न आस्मान को यूं सर कशीदा होना था

हुजूरे खाके मदीना ख़मीदा होना था

 

अगर गुलों को ख़ज़ां ना रसीदा होना था

कनारे खारे मदीना दमीदा होना था

 

हुजूर उन के खिलाफ़े अदब थी बेताबी

मेरी उमीद ! तुझे आरमीदा होना था

 

नज़ारा खाके मदीना का और तेरी आंख

न इस क़दर भी कुमर शोख दीदा होना था

 

कनारे खाके मदीना में राहुतें मिलतीं

दिले हजीं! तुझे अश्के चकीदा होना था

 

पनाहे दामने दश्ते हरम में चैन आता न

सब्रे दिल को गुजाले रमीदा होना था

 

येह कैसे खुलता कि उन के सिवा शफ़ीअ नहीं

अबस न औरों के आगे तपीदा होना था

 

हिलाल कैसे न बनता कि माहे कामिल को

सलामे अब्रूए शह में ख़मीदा होना था

 

नसीम क्यूं न शमीम उन की त्यबा से लाती

कि सुब्हे गुल को गिरीबां दरीदा होना था

 

टपक्ता रंगे जुनूं इश्के शह में हर गुल से

रंगे बहार को निश्तर रसीदा होना था

 

बजा था अर्श पे खाके मज़ारे पाक को नाज़

कि तुझ सा अर्श नशीं आफ़रीदा होना था.

 

गुज़रते जान से इक शोरे “या हबीब” के साथ

फुगां को नालए हल्के बुरीदा होना था

 

मेरे करीम गुनह ज़हर है मगर आखिर

कोई तो शहदे शफाअत चशीदा होना था

 

जो संगे दर पे जबीं साइयों में था मिटना

तो मेरी जान शरारे जहीदा होना था

 

तेरी क़बा के न क्यूं नीचे नीचे दामन हों

कि खाकसारों से या कब कशीदा होना था

 

रजा़ जो दिल को बनाना था जल्वा गाहे हबीब

तो प्यारे कैदे खुदी से रहीदा होना था