नात सरकार की पढ़ता हूँ मैं

बस इसी बात से घर में मेरे रहमत होगी

इक तेरा नाम वसीला है मेरा

रंज-ओ-ग़म में भी इसी नाम से राहत होगी

ये सुना है कि बहुत गोर अँधेरी होगी

क़ब्र का ख़ौफ़ न रखना, ए दिल !

वहाँ सरकार के चेहरे की ज़ियारत होगी

कभी यासीं , कभी ताहा, कभी वलैल आया

जिस की क़समें मेरा रब खाता है।

कितनी दिलकश मेरे महबूब की सूरत होगी !

हश्र का दिन भी अजब देखने वाला होगा

ज़ुल्फ़ लहराते वो जब आएँगे

फिर क़यामत पे भी ख़ुद एक क़यामत होगी

उनको मुख्तार बनाया है मेरे अल्लाह ने

ख़ुल्द में बस वो ही जा सकता है।

जिस को हसनैन के नाना की इजाज़त होगी

दो-जहाँ में उसे फिर कौन पनाह में लेगा।

होगा रुस्वा वो सर-ए-हश्र जिसे

 सय्यिदा ज़हरा के बच्चों से अदावत होगी

उन की चौखट पे पड़े हैं तो बड़ी मौज में हैं

लौट के आएँगे जब उस दर से

मेरे दिल ! तू ही बता क्या तेरी हालत होगी!

रश्क़ से दूर खड़े देखते होंगे ज़ाहिद

जब सर-ए-हश्र गुनाहगारों पर

मेरे आक़ा का करम होगा, इनायत होगी

मेरा दामन तो गुनाहों से भरा है, अल्ताफ़ !

इक सहारा है कि मैं तेरा हूँ

इसी निस्बत से सर-ए-हश्र शफ़ाअ’त होगी