बड़ी उम्मीद है सरकार क़दमों में बुलाएँगे

करम की जब नज़र होगी मदीने हम भी जाएँगे

दिलों में जो दिये उन की मोहब्बत के जलाएँगे

यक़ीनन वो सुराग़-ए-मंज़िल-ए-मक्सूद पाएँगे

अगर जाना मदीने में हुवा हम ग़म के मारों का

मकीन-ए-गुंबद -ए-ख़ज़रा को हाल-ए-दिल सुनाएँगे क़सम अल्लाह की! होगा वो मंज़र दीद के क़ाबिल

क़यामत में रसूलुल्लाह जब तशरीफ़ लाएँगे

क़यामत तक जगाएँगे न फिर मुनकर-नकीर उस को लहद में वो जिसे अपना रुख़-ए-ज़ेबा दिखाएँगे

गुनहगारों में खुद आ आ के शामिल पारसा होंगे। शफ़ी-ए-हश्र जब दामान-ए-रहमत में छुपाएँगे

उधर बरसेगा बारान-ए-करम मैदान-ए-महशर में

जिधर भी रहमत-ए-आलम निगाहों को उठाएँगे

ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी से होगा जब मामूर दिल नय्यर !

तेरे जुल्मत-कदे में भी सितारे जगमगाएँगे