फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
अपना जल्वा इसी में दिखा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
रुख़ से पर्दा अब अपने हटा दो
अपना जल्वा इसी में दिखा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
एक मुजरिम सियाह-कार हूँ मैं
हर ख़ता का सज़ा-वार हूँ मैं
मेरे चारों तरफ़ है अँधेरा
रौशनी का तलबग़ार हूँ मैं
इक दिया ही समझ कर जला दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
वज्द में आएगा सारा ‘आलम
हम पुकारेंगे, या ग़ौस-ए-आ’ज़म
वो निकल आएँगे जालियों से
और क़दमों में गिर जाएँगे हम
फिर कहेंगे कि बिगड़ी बना दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
ग़ौस-उल-आ’ज़म हो, ग़ौस-उल-वरा हो
नूर हो नूर-ए-सल्ले-‘अला हो
क्या बयाँ आप का मर्तबा हो !
दस्त-गीर और मुश्किल-कुशा हो
आज दीदार अपना करा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
सुन रहे हैं वो फ़रियाद मेरी
ख़ाक होगी न बर्बाद मेरी
मैं कहीं भी मरुँ, शाह-ए-जीलाँ !
रूह पहुँचेगी बग़दाद मेरी
मुझ को परवाज़ के पर लगा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
हर वली आप के ज़ेर-ए-पा है
हर अदा मुस्तफ़ा की अदा है
आपने दीन ज़िंदा किया है
डूबतों को सहारा दिया है
मेरी कश्ती किनारे लगा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़िक्र देखो, ख़यालात देखो
ये ‘अक़ीदत ये जज़्बात देखो
मैं हूँ क्या ! मेरी औक़ात देखो
सामने किस की है ज़ात देखो
ए अदीब ! अपने सर को झुका लो
जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो
जालियों पर निगाहें जमी हैं