अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
जैसे मेरे सरकार है ऐसा नहीं कोई
तुमसा तो हंसी आंखे ने देखा नहीं कोई
ये शाने लताफत हे के साया नहीं कोई
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
ए जरफे नजर देख मगर डेख अदब से
सरकार का जलवा है तमाशा नहीं कोई
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
होता है जहा जीकर मुहम्मद के करम का
इस बज़्म में महरूमें तमन्ना नहीं कोई
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
एजाज ये हासिल हे तो हासिल हे ज़मीं को
अफ्लाक पे तो गुंबदे खजरा नहीं कोई
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई
सरकार की रहमत ने मगर खूब नवाजा
ये सच है की खालिद सा निकम्मा नहीं कोई
अब मैरी निगाहों में जचता नहीं कोई