शेहर नबी तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है
ख़ुल्द भी है मुश्ताक़े ज़ियारत जल्वा ही कुछ ऐसा है
दिल को सुकूं दे, आँख को ठंडक, रौज़ा ही कुछ ऐसा है
फ़र्शे ज़मीं पर अर्शे बरी हो लगता ही कुछ ऐसा है
उनके दर पर ऐसा झुका दिल ! उठने का कुछ होश नहीं
अहले शरीयत हैं सकते में सजदा ही कुछ ऐसा है
अर्शे मुअ़ल्ला सर पे उठाए, ता़हिरे-सिदरा आँख लगाए
पत्थर भी क़िस्मत चमकाएं तलवा ही कुछ ऐसा है
सिब्ते नबी हैं पुश्ते नबी पर और सजदे की हालत है
आक़ा ने तस्बीह़ बड़ा दी, बेटा ही कुछ ऐसा है
ख़म हैं यहाँ जमशेदो सिकंदर, इस मे क्या हैरानी है
उनके ग़ुलामों का ऐ अख़्तर ! रुतबा ही कुछ ऐसा है
शेहरे नबी तेरी गलियों का नक़्शा ही कुछ ऐसा है
ख़ुल्द भी है मुश्ताक़े ज़ियारत जल्वा ही कुछ ऐसा है