शहर-ए-तयबा का वो बाज़ार बड़ा प्यारा है हम गुलामों का ख़रीदार बड़ा प्यारा है।

रोज़ कहती है मदीने में उतर के जन्नत

 या नबी ! आप का दरबार बड़ा प्यारा है।

देख कर कहते थे सिद्दीक़ को मेरे आका ऐ सहाबा ! ये मेरा यार बड़ा प्यारा है

 

यूँ तो इज़हार-ए-मोहब्बत है किया कितनो ने ऐ बिलाल ! आप का इज़हार बड़ा प्यारा है

 

उनके गुस्ताख़ को मारा है, छपी है ये ख़बर वाक़ि’ई आज का अख़बार बड़ा प्यारा है।

 

बँधने वाले हैं मोहब्बत के ‘अमामें सर पर आज का मौका’-ए-दस्तार बड़ा प्यारा है

 

ऐ ग़ज़ाली ! जो छुपाएगा हमें महशर में वो वसी’ दामन-ए-सरकार बड़ा प्यारा है।

 

शायर :

गुलाम गौस ग़ज़ाली