मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया
आप ने क़तरे को दरिया कह दिया तो हो गया

हाथ में तलवार ले कर आए जब हज़रत उमर
आ मेरे दामन में आजा कह दिया तो हो गया

आबदीदा थे ब-वक़्ते-अस्र जब हज़रत अली
डूबे सूरज को ‘निकल जा’ कह दिया तो हो गया

मस्जिदे-नबवी में घर से आप के मिम्बर तलक
आप ने जन्नत का टुकड़ा कह दिया तो हो गया

मुस्तफ़ा से है ख़ुदा को प्यार कितना देखिये
ख़ाना-ए-काबा को क़िब्ला कह दिया तो हो गया

नाम ले कर मुस्तफ़ा का, हाथ में ले कर कलाम
मैंने अजमल इक क़सीदा कह दिया तो हो गया