तेरे दामन-ए-करम में जिसे नींद आ गई है जो फ़ना न होगी ऐसी उसे ज़िंदगी मिली है

मुझे क्या पड़ी किसी से करूँ ‘अर्ज़ मुद्द’ आ मैं मेरी लौ तो बस उन्हीं के दर-ए-जूद से लगी है

 

वो जहान भर के दाता मुझे फेर देंगे ख़ाली मेरी तौबा, ऐ ख़ुदा ! ये मेरे नफ़्स की बढ़ी है

जो प-ए-सवाल आए, मुझे देख कर ये बोले इसे चैन से सुलाओ कि ये बंदा-ए-नबी है

 

मैं मरूँ तो मेरे मौला! ये मलाइका से कह दें कोई इस को मत जगाना, अभी आँख लग गई है।

मैं गुनाहगार हूँ और बड़े मर्तबों की ख़्वाहिश तू मगर करीम है ख़ू तेरी बंदा परवरी है।

 

तेरी याद थपकी दे कर मुझे अब, शहा! सुला दे मुझे जागते हुए यूँ बड़ी देर हो गई है।

ऐ नसीम-ए-कू-ए-जानाँ ज़रा सू-ए-बद-नसीबाँ चली आ, खुली है तुझ पे जो हमारी बेकसी है

 

तेरा दिल शिकस्ता अख्तर इसी इंतिज़ार में है

कि अभी नवीद ए वसलत तेरे दर से आ रही है।