जितना दिया सरकार ने मुझ को, उतनी मेरी औक़ात नहीं
ये तो करम है उन का वर्ना मुझ में तो ऐसी बात नहीं
तू भी वहीं पर जा कि जहाँ पर सब की बिगड़ी बनती है
एक तेरी तक़दीर बनाना उन के लिए कुछ बात नहीं
तू भी वहीं पे जा जिस दर पर सब की बिगड़ी बनती है
एक तेरी तक़दीर बनाना इन के लिए कुछ बात नहीं
जो हैं मेरी जान-ओ-इमाँ, क्या में उन की नज्र करूँ
पास मेरे अश्कों के अलावा और कोई सौग़ात नहीं
‘इश्क़-ए-शह-ए-बतहा से पहले मुफ़्लिस-ओ-ख़स्ता हाल था मैं
नाम-ए-मुहम्मद के मैं कुर्बी, अब वो मेरे हालात नहीं
ज़िक्र-ए-नबी में जो दिन गुज़रे, वो दिन सब से बेहतर है
याद-ए-नबी में रात जो गुज़रे, उस से बेहतर रात नहीं
ग़ौर तो कर, सरकार की तुझ पर कितनी ख़ास इनायत है।
कौसर ! तू है उन का सना-ख़्वाँ, ये मामूली बात नहीं