बन्दा मिलने को क़रीबे हज़रते क़ादिर गया

बन्दा मिलने को क़रीबे हज़रते क़ादिर गया लम्अए बातिन में गुमने जल्वए ज़ाहिर गया   तेरी मरज़ी पा गया सूरज फिरा उलटे क़दम तेरी उंगली उठ गई मह का कलेजा चिर गया   बढ़ चली तेरी ज़िया अन्धेर आलम से घटा खुल गया गेसू तेरा रहमत का बादल घिर गया   बंध गई तेरी हवा सावह...

ख़राब हाल किया दिल को पुर मलाल किया

ख़राब हाल किया दिल को पुर मलाल किया तुम्हारे कूचे से रुख़्सत किया निहाल किया   न रूए गुल अभी देखा न बूए गुल सूंघी क़ज़ा ने ला के क़फ़स में शिकस्ता बाल किया   वोह दिल कि खूं शुदा अरमां थे जिस में मल डाला फुगां कि गोरे शहीदां को पाएमाल किया   येह राय क्या...

शोरे महे नौ सुन कर तुझ तक मैं दवां आया

शोरे महे नौ सुन कर तुझ तक मैं दवां आया साकी मैं तेरे सदके मै दे र-मज़ा आया   इस गुल के सिवा हर फूल बा गोशे गिरां आया देखे ही गी ऐ बुलबुल जब वक्ते फुगां आया   जब बामे तजल्ली पर वोह नय्यरे जां आया सर था जो गिरा झुक कर दिल था जो तपां आया   जन्नत को हरम...

न आस्मान को यूं सर कशीदा होना था

न आस्मान को यूं सर कशीदा होना था हुजूरे खाके मदीना ख़मीदा होना था   अगर गुलों को ख़ज़ां ना रसीदा होना था कनारे खारे मदीना दमीदा होना था   हुजूर उन के खिलाफ़े अदब थी बेताबी मेरी उमीद ! तुझे आरमीदा होना था   नज़ारा खाके मदीना का और तेरी आंख न इस क़दर भी...

रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं

रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं शब ज़ुल्फ़ या मुश्के ख़ुता येह भी नहीं वोह भी नहीं मुम्किन में येह क़ुदरत कहां वाजिब में अ़ब्दिय्यत कहां ह़ैरां हूं येह भी है ख़त़ा येह भी नहीं वोह भी नही ह़क़ येह कि हैं अ़ब्दे इलाह और अ़ालमे इम्कां के शाह बरज़ख़ हैं वोह सिर्रे...

उनकी महक ने दिल के गुन्चे खिला दिये हैं

उनकी महक ने दिल के गुन्चे खिला दिये हैं जिस राह चल दिये हैं कूचे बसा दिये हैं।   जब आ गई है जोशे रहमत पे उनकी आंखें जलते बुझा दिये हैं रोते हंसा दिये हैं।   एक दिल हमारा क्या है आज़ार उसका कितना तुम ने तो चलते फिरते मुर्दे जिला दिये हैं।   उनके निसार...