बरतर क़ियास से है मक़ामे अबुल हुसैन

बरतर क़ियास से है मक़ामे अबुल हुसैन सिदरा से पूछो रिफ़्अ़ते बामें अबुल हुसैन   वा रस्ता पाए बस्तए दामे अबुल हुसैन आज़ाद नार से है गुलामे अबुल हुसैन   ख़़त्ते सियह में नूरे इलाही की ताबिशें क्या सुब्ह़े नूरबार है शामे अबुल हुसैन   साक़ी सुना दे शीशए बग़दाद की...

बन्दा क़ादिर का भी क़ादिर भी है अ़ब्दुल क़ादिर

बन्दा क़ादिर का भी क़ादिर भी है अ़ब्दुल क़ादिर सिर्रे बात़िन भी है ज़ाहिर भी है अ़ब्दुल क़ादिर मुफ़्तिये शर-अ़ भी है क़ाज़िये मिल्लत भी है इ़ल्मे असरार से माहिर भी है अ़ब्दुल क़ादिर   मम्बए़ फ़ैज़ भी है मज़्मए अफ़्ज़ाल भी है मेहरे इरफ़ां का मुनव्वर भी है अ़ब्दुल क़ादिर  ...

अंधेरी रात है ग़म की घटा इ़स्यां की काली है

अंधेरी रात है ग़म की घटा इ़स्यां की काली है दिले बेकस का इस आफ़त में आक़ा तू ही वाली है   न हो मायूस आती है सदा गोरे ग़रीबां से नबी उम्मत का ह़ामी है खुदा बन्दों का वाली है i     उतरते चांद ढलती चांदनी जो हो सके कर ले अंधेरा पाख आता है यह दो दिन की उजाली है...

वोह सरवरे किश्वरे रिसालत जो अर्श पर

वोह सरवरे किश्वरे रिसालत जो अर्श पर जल्वा-गर हुए थे नए निराले तरब के सामां अरब के मेहमान के लिये थे   बहार है शादियां मुबारक चमन को आबादियां मुबारक मलक फलक अपनी अपनी लै में यह घर अनादिल का बोलते थे   वहां फुलक पर यहां ज़मीं में रची थी शादी मची थी धूमें उधर...

किस के जल्वे की झलक है येह उजाला क्या है

किस के जल्वे की झलक है येह उजाला क्या है हर तरफ़ दीदए हैरत ज़दा तक्ता क्या है   मांग मन मानती मुंह मांगी मुरादें लेगा न यहां “ना” है न मंगता से यह कहना “क्या है”   पन्द कड़वी लगे नासेह से तुर्श हो ऐ नपुंस ज़हरे इस्यां में सितम-गर तुझे मीठा...

क्या महकते हैं महकने वाले

क्या महकते हैं महकने वाले, बू पे चलते हैं भटकने वाले। जगमगा उठी मेरी गोर की ख़ाक, तेरे कुरबान चमकने वाले। महे बे दाग़ के सदक़े जाऊं, यूं दमकते हैं दमकने वाले।   अ़र्श तक फैली है ताबे आ़रिज़, क्या झलकते हैं झलकने वाले। गुले तैबा की सना गाते हैं, नख़्ले त़ूबा पे चहकने...