वाह क्या मर्तबा ऐ ग़ौस है बाला तेरा

वाह क्या मर्तबा ऐ ग़ौस है बाला तेरा ऊंचे ऊंचों के सरों से क़दम आ’ला तेरा सर भला क्या कोई जाने कि है कैसा तेरा औलिया मलते हैं आंखें वोह है तल्वा तेरा क्या दबे जिस पे ह़िमायत का हो पन्जा तेरा शेर को ख़त़रे में लाता नहीं कुत्ता तेरा तू ह़ुसैनी ह़-सनी क्यूं न मुह़िय्युद्दीं...

तू शम-ए-रिसालत है, आलम तेरा परवाना

तू शम-ए-रिसालत है, आलम तेरा परवाना तू माह-ए-नुबुव्वत है, ऐ जल्वा-ए-जानाना जो साक़ी-ए-कौसर के चेहरे से निक़ाब उठे हर दिल बने मयख़ाना, हर आँख हो पैमाना दिल अपना चमक उठे ईमान की तलअत से कर आँखें भी नूरानी ऐ जल्वा-ए-जानाना सरशार मुझे कर दे एक जाम-ए-लबालब से ता हश्र रहे साक़ी...

ताजदार-ए-हरम ! हो निगाह-ए-करम

क़िस्मत में मेरी चैन से जीना लिख दे डूबे न कभी मेरा सफ़ीना लिख दे जन्नत तो ठिकाना है मगर दुनिया में ऐ कातिब-ए-तक़दीर मदीना लिख दे  ताजदार-ए-हरम ! हो निगाह-ए-करम हम ग़रीबों के दिन भी सँवर जाएंगे हामि-ए-बे-कसां ! क्या कहेगा जहाँ आप के दर से ख़ाली अगर जाएंगे ताजदार-ए-हरम...

सुब्ह़ त़यबा में हुई बटता है बाड़ा नूर का

सुब्ह़ त़यबा में हुई बटता है बाड़ा नूर का सदक़ा लेने नूर का आया है तारा नूर का बाग़े त़यबा में सुहाना फूल फूला नूर का मस्ते बू हैं बुलबुलें पढ़ती हैं कलिमा नूर का बारहवीं के चांद का मुजरा है सज्दा नूर का बारह बुर्जों से झुका एक इक सितारा नूर का तेरे ही माथे रहा है ऐ जान...

सिर्फ़ एक बार, सिर्फ़ एक बार

सिर्फ़ एक बार, सिर्फ़ एक बार सिर्फ़ एक बार, सिर्फ़ एक बार दिल से मुस्तफ़ा को तू पुकार होगा बेड़ा पार, होगा बेड़ा पार जहाँ जहाँ भी गए वो करम ही करते गए किसी ने माँगा न माँगा वो झोली भरते गए ऐसे हैं सरकार ! मेरे ऐसे हैं सरकार ! ऐसे हैं सरकार ! मेरे ऐसे हैं सरकार ! कोई आ जाए...

पढ़ना क़सीदा हक़ दे वली दा

पढ़ना क़सीदा हक़ दे वली दा सारे लगाओ ना’रा अली दा   मौला ते मेरा, पीरां दा पीर ए मैं की डसेवां ! किन्ना अमीर ए तह्तु-स्सरा तों अर्श-ए-उला ताईं सारे दा सारा रक़बा अली दा पढ़ना क़सीदा हक़ दे वली दा सारे लगाओ ना’रा अली दा हिक आम बाल ए, हिक ख़ास बाल ए जेह्ड़ा ख़ास बाल ए, ज़हरा...

नूर वाला आया है नूर ले कर आया है

नूर वाला आया है नूर ले कर आया है सारे आलम में ये देखो कैसा नूर छाया है अस्सलतू वस्सलामू अलाइका या रसूल अल्लाह अस्सलतू वस्सलामू अलाइका या हबीब अल्लाह जब तलाक़ ये चाँद तारे झिलमिलते जाएँगे तब तलाक़ जश्न ए विलादत हम मानते जाएँगे नूर वाला आया है नूर लेकर आया है सारे आलम...

लह़द में इ़श्क़-ए-रुख़-ए-शह का दाग़ ले के चले

लह़द में इ़श्क़-ए-रुख़-ए-शह का दाग़ ले के चले अंधेरी रात सुनी थी चिराग़ ले के चले तेरे ग़ुलामों का नक़्श-ए-क़दम है राह-ए-ख़ुदा वोह क्या बहक सके जो येह सुराग़ ले के चले जिनां बनेगी मुह़िब्बाने चार यार की क़ब्र जो अपने सीने में येह चार बाग़ ले के चले गए, ज़ियारत-ए-दर की, सद आह !...

ख़ुदा की अज़्मतें क्या हैं, मुहम्मद मुस्तफ़ा जाने

ख़ुदा की अज़्मतें क्या हैं, मुहम्मद मुस्तफ़ा जाने मक़ाम-ए-मुस्तफ़ा क्या है, मुहम्मद का ख़ुदा जाने सदा करना तो मेरे बस में था मैंने सदा कर दी वो क्या देंगे, मैं क्या लूँगा, सख़ी जाने, गदा जाने ख़ुदा की अज़्मतें क्या हैं, मुहम्मद मुस्तफ़ा जाने मक़ाम-ए-मुस्तफ़ा क्या है, मुहम्मद का...

ख़ैरात लेने आ गए मंगते तुम्हारे ख़्वाजा

ख़ैरात लेने आ गए मंगते तुम्हारे ख़्वाजा भर दीजिए दामन मुरादों से हमारे ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा पिया, मेरे ख़्वाजा पिया मेरे ख़्वाजा पिया, मेरे ख़्वाजा पिया मंगतों की रखले लाज कर दे सब मुरादें पूरी दामन पसारे आ गए तेरे द्वारे ख़्वाजा ख़ैरात लेने आ गए मंगते तुम्हारे ख़्वाजा भर दीजिए...