जो हो चुका है, जो होगा, हुज़ूर जानते हैं
तेरी ‘अता से, ख़ुदाया ! हुज़ूर जानते हैं
वो मोमिनों की तो जानों से भी करीब हुए
कहाँ से किस ने पुकारा, हुज़ूर जानते हैं
हिरन ये कहने लगी, छोड़ दे मुझे, सय्याद !
मैं लौट आऊँगी वल्लाह, हुज़ूर जानते हैं
हिरन ने, ऊँट ने, चिड़ियों ने की यही फ़रियाद
कि उन के राम का मदावा हुज़ूर जानते हैं।
बुला रहे हैं नबी, जा के इतना बोल उसे
दरख़्त कैसे चलेगा हुज़ूर जानते हैं
कहाँ मरेंगे अबू-जहत-ओ-उत्बा-ओ-रीबा
कि जंग-ए-बद्र का नक्शा हुज़ूर जानते हैं।
इसी लिए तो सुलाया है अपने पहलू में
कि पार-ए-ग़ार का रुत्वा हुजुर जानते हैं
उमर ने तन से जुदा कर दिया था सर जिस का
वो अपना है कि पराया हुजूर जानते हैं
नबी का फैसला न मान कर वो जो से गया।
मिज़ाज उमर का है कैसा, हुजूर जानते हैं।
वोही हैं पैकर-ए-शर्म-ओ-हया-ओ-जुन्नूरैन
मक़ाम उन की हया का हुजूर जानते हैं
वो खुद शहीद हैं, बेटे, नवासे, पोते शहीद
‘अली की शान-ए-यगाना हुज़ूर जानते हैं
हैं जिस के मौला हुजूर, उस के हैं ‘अली मौला
अबू-तुराब का रुत्बा हुज़ूर जानते हैं
मैं उन की बात करूँ ये कहाँ मेरी औक़ात
कि शान-ए-फ़ातिमा ज़हरा हुजूर जानते हैं।
नहीं है ज़ाद-ए-सफ़र पास जिन गुलामों के
उन्हें भी दर पे बुलाना हुज़ूर जानते हैं
ख़ुदा को देखा नहीं और एक मान लिया
ये जानते थे सहाबा, हुज़ूर जानते हैं
ख़बर भी है ? कि ख़बर सब की है उन्हें कब से
कि जब ये अब था न तब था, हुजूर जानते हैं
मुनाफ़िक़ों का ‘अक़ीदा, वो ग़ैब-दान नहीं
सहाबियों का ‘अक़ीदा, हुज़ूर जानते हैं
ऐ ‘इल्म-ए-ग़ैब के मुन्किर ! ख़ुदा को देखा है ?
तुझे भी कहना पड़ेगा, हुज़ूर जानते हैं
उन्हीं के हाथ में हैं कुंजियाँ ख़ज़ानों की
कि किस को देना है कितना, हुज़ूर जानते हैं
है उन के हाथ में क्या-क्या, तुझे ख़बर न मुझे
ख़ुदा ने कितना नवाज़ा, हुज़ूर जानते हैं।
वो कितना फ़ासला था और कलाम था कितना
अव-अदना और फ़-अव्हा हुज़ूर जानते हैं
मिले थे राह में नौ बार किस लिए मूसा
कि दीद-ए-हक़ का बहाना हुज़ूर जानते हैं।
ख़ुदा ही जाने, ‘उबैद ! उन को है पता क्या-क्या
हमें पता है बस इतना, हुज़ूर जानते हैं।