रब ने बनाया है कुछ ऐसा रुत्बा ग़ौस-ए-आज़म का
जिन्न-ओ-बशर के लब पे सजा है ख़ुत्ब ग़ौस-ए-आज़म का
जितने वली आए हैं जहाँ में, सब हैं अहल-ए-शान मगर
सब वलियों की गर्दन पर है तल्वा ग़ौस-ए-आज़म का
उन की जन्नत, उन की हुक़ूमत, रब उन का तो सब उन का
खाता है ये सारा ज़माना सदक़ा ग़ौस-ए-आज़म का
करते हैं फ़रियाद-रसाई अपनी तुर्बत-ए-अनवर से
दुनिया के जिस कोने में हो शैदा ग़ौस-ए-आज़म का
क़ब्र में गर पूछेंगे फ़रिश्ते, क्या है तेरी पहचान बता ?
कह दूँगा लाया हूँ देखो शजरा ग़ौस-ए-आज़म का
निस्बत हो जिस को उस दर से, क्यूँ वो डरे गुलज़ार ! भला
चीर के रख दे शेर-ए-बब्बर को कुत्ता ग़ौस-ए-आज़म का