या इलाही भूल जाऊं नज़्अ़ की तक्लीफ़ को

शादिये दीदारे ह़ुस्ने-मुस्त़फ़ा का साथ हो

 

 

 

या इलाही गोरे तीरह की जब आए सख़्त रात

उन के प्यारे मुंह की सुब्ह़े जां फ़िज़ा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब पड़े मह़शर में शोरे दारो गीर

अम्न देने वाले प्यारे पेशवा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब ज़बानें बाहर आएं प्यास से

साह़िबे कौसर शहे जूदो अ़त़ा का साथ हो

 

 

या इलाही सर्द मेहरी पर हो जब ख़ुरशीदे ह़श्र

सय्यिदे बे साया के ज़िल्ले लिवा का साथ हो

 

 

 

या इलाही गर्मिये मह़शर से जब भड़कें बदन

दामने मह़बूब की ठन्डी हवा का साथ हो

 

 

 

या इलाही नाम-ए-आ’माल जब खुलने लगें

ऐ़ब पोशे ख़ल्क़ सत्तारे ख़त़ा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब बहें आंखें ह़िसाबे जुर्म में

उन तबस्सुम रेज़ होंटों की दुअ़ा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब ह़िसाबे ख़न्दए बे जा रुलाए

चश्मे गिर्याने शफ़ीए़ मुर्तजा का साथ हो

 

 

 

या इलाही रंग लाएं जब मेरी बे बाकियां

उन की नीची नीची नज़रों की ह़या का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब चलूं तारीक राहे पुल सिरात़

आफ़्ताबे हाशिमी नूरुल हुदा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब सरे शमशीर पर चलना पड़े

रब्बे सल्लिम कहने वाले ग़मजु़दा का साथ हो

 

 

 

या इलाही जो दुअ़ाए नेक मैं तुझ से करूं

क़ुदसियों के लब से आमीं रब्बना का साथ हो

 

 

 

या इलाही जब रज़ा ख़्वाबे गिरां से सर उठाए

दौलते बेदारे इ़श्क़े मुस्त़फा का साथ हो