मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले-‘अला कहते कहते
हबीब-ए-ख़ुदा का नज़ारा करूँ मैं
दिल-ओ-जान उन पर निसारा करूँ मैं
मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले-अला कहते कहते
मुझे अपनी रहमत से तू अपना कर ले
सिवा तेरे सब से किनारा करूँ मैं
मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले- अला कहते कहते
ख़ुदा-रा! अब आओ कि दम है लबों पर
दम-ए-वापसीं तो नज़ारा करू में
मैं सो जाऊँ या मुस्तफा कहते कहते।
खुले आँख सल्ले- अला कहते कहते
मुझे हाथ आए अगर ताज-ए-शाही
तेरी कफ़्श-ए-पा पर निसारा करूँ मैं
मैं सो जाऊ या मुस्तफा कहते कहते
खुले आख सल्ले- अला कहते कहते
तेरा जिक्र लब पर ख़ुदा दिल के अंदर
यूँ ही जिंदगानी गुज़ारा करू में
मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले-‘अला कहते कहते
दम-ए-वापसीं तक तेरे गीत गाउँ
मुहम्मद मुहम्मद पुकारा करूँ मैं
मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले-‘अला कहते कहते
तेरे दर के होते कहाँ जाऊँ, प्यारे !
कहाँ अपना दामन पसारा करूँ मैं
मैं सो जाऊँ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले- अला कहते कहते।
खुदा खैर से लाए वो दिन भी, नूरी।
मदीने की गलियाँ बुहारा करू में
मैं सो जाऊ या मुस्तफ़ा कहते कहते
खुले आँख सल्ले- अला कहते कहते