ज़िक्रे अहमद से सीना सजा है, इश्क है ये तमाशा नहीं है,
वो भी दिल कोई दिल है जहां में, जिसमे तस्वीरे तैबह नहीं है।
ऐ मेरी मौत रुक जा अभी तू, फिर चलेंगे (मिलेंगे) जहां तू कहेगी,
अपने मश्के तसव्वुर में तैबह, मैंने जी भर के देखा नहीं है।
हज की दौलत जिसे मिल न पाए, जाए जाए वो घर अपने जाए,
माँ के क़दमों को वो चूम ले जो, संगे अस्वद को चूमा नहीं है।
हम हुसैनी हैं करबल के शयदा, दिल कभी भी न होता है मैला,
कुफ्र (शिर्क) की धमकियों से डरे जो, सुन्नियों का कलेजा नहीं है।
खाक पाए नबी मुंह पे मलना, इतर हो मुस्तफा का पसीना,
उनकी चादर का टुकड़ा कफ़न हो, और कोई तमन्ना नहीं है।