कोई मंसूर, कोई बन के ग़ज़ाली आए
उन के दरबार से हो कर जो सवाली आए
हो मेरे बस में तो मैं दिल में बिठा लूँ उन को
चूम कर जो मेरे सरकार की जाली आए
उन की रहमत को तो ये बात गवारा ही नहीं
उन की चौखट पे कोई जाए तो ख़ाली आए
उन के अल्ताफ़-ओ-करम बढ़ के ख़रीदें उन्हें
आज भी ले के कोई ज़ौक़-ए-बिलाली आए
उन का जल्वा तो है मौजूद यहाँ भी लेकिन
कोई ले कर तो नज़र देखने वाली आए
आँख खोलूँ तो नज़र गुंबद-ए-ख़ज़रा पे पड़े
दिल में झाँकूँ तो नज़र जल्वा-ए-आली आए