
आज अश्क मेरे नात सुनाए तो अजब किया
आज अश्क मेरे नात सुनाए तो अजब किया सुनकर वोह मुझे पास बुलाए तो अजब किया उन पर तो गुनेहगार का सब हाल खूला है उस पर भी वोह दामन में छुपाए तो अजब किया मुंह ढानप के रखना रखना के गुनेहगार बहुत है मय्यत को मेरी देखने आए तो अजब किया ना जादे सफर हे ना कोई काम भले है फीर भी...
मुझ पे भी चश्मे करम ऐ मेरे आक़ा करना
मुझ पे भी चश्मे करम ऐ मेरे आक़ा करना हक़ तो मेरा भी है रहमत का तकाज़ा करना तू किसी को भी उठाता नहीं अपने दर से के तेरी शान के शाया नहीं ऐसा करना मैं के ज़र्रा हूं मुझे वुसअते शहदा दे दे कि तेरे बस में है क़तरे को भी दरिया करना ये तेरा काम है ऐ आमना के दुर्रे यतीम सारी...
हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बेशुमार
या रसूल अल्लाह या हबीब अल्लाह मेरे आक़ा मेरे दाता मेरे आक़ा मेरे दाता मेरे आक़ा……. हो करम सरकार अब तो हो गए ग़म बेशुमार जान-ओ-दिल तुम पर फ़िदा ऐ दो जहां के ताजदार हो करम सरकार…. मैं अकेला और मसा’इल ज़िन्दगी के बेशुमार आप ही कुछ कीजिए ना ऐ शहे आली वक़ार हो करम सरकार…....
अजब रंग पर है बहारे मदीना
अजब रंग पर है बहारे मदीना के सब जन्नतें हैं निसारे मदीना ये जन्नत की तस्वीर है मदीना ही तक़दीर है लबों पर सजा कर दुरूदों की बोली चली आ रही है फ़रिश्तों की टोली दमे सुब्हो उतरी है रह़मत की डोली मुरादों से भर जाएगी सबकी झोली वो नूरून अला नूर त़शरीफ़ लाए ख़ुदाई के दस्तूर...
हरा गुम्बद जो देखोगे, ज़माना भूल जाओगे
हरा गुम्बद जो देखोगे, ज़माना भूल जाओगे अगर तयबा को जाओगे, तो आना भूल जाओगे न इतराओ ज़्यादा चाँद तारो अपनी रंगत पर मेरे आक़ा को देखोगे चमकना भूल जाओगे हरा गुम्बद जो देखोगे, ज़माना भूल जाओगे अगर तयबा को जाओगे, तो आना भूल जाओगे अगर तुम गौर से मेरे नबी की नात सुन लोगे मेरा...
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं
फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो रुख़ से पर्दा अब अपने हटा दो अपना जल्वा इसी में दिखा दो जालियों पर निगाहें जमी हैं फ़ासलों को ख़ुदा-रा ! मिटा दो जालियों पर निगाहें...
मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया
मो’जज़ा मेरे नबी का कह दिया तो हो गया आप ने क़तरे को दरिया कह दिया तो हो गया हाथ में तलवार ले कर आए जब हज़रत उमर आ मेरे दामन में आजा कह दिया तो हो गया आबदीदा थे ब-वक़्ते-अस्र जब हज़रत अली डूबे सूरज को ‘निकल जा’ कह दिया तो हो गया मस्जिदे-नबवी में घर से आप के मिम्बर तलक आप...
करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है
करम के बादल बरस रहे हैं, दिलों की खेती हरी भरी है ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है ये कौन आया के ज़िक्र जिस का नगर नगर है गली गली है ये कौन बन कर क़रार आया, ये कौन जाने-बहार आया गुलों के चेहरे हैं निखरे निखरे, कली कली में शगुफ़्तगी है ये कौन आया के...
रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं
रुख़ दिन है या मेहरे समा येह भी नहीं वोह भी नहीं शब ज़ुल्फ़ या मुश्के ख़ुता येह भी नहीं वोह भी नहीं मुम्किन में येह क़ुदरत कहां वाजिब में अ़ब्दिय्यत कहां ह़ैरां हूं येह भी है ख़त़ा येह भी नहीं वोह भी नही ह़क़ येह कि हैं अ़ब्दे इलाह और अ़ालमे इम्कां के शाह बरज़ख़ हैं वोह सिर्रे...
मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या
मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या सद लो मदीने आक़ा, करो मेहरबानियां डाहड़ा हां ग़रीब आक़ा, कोल मेरे ज़र नहीं उड़के मैं कीवें आवां नाल मेरे पर नहीं असीं ते डेरा तेथों बड़ी दूर ला लया सद लो मदीने आक़ा, करो मेहरबानियां मैनूं मजबूरियां ते दूरियां ने मार्या कोण जाके दस्से...