या मुहम्मद नूर-ए-मुजस्सम ! या हबीबी ! या मौलाई !
तस्वीर-ए-कमाल-ए-मोहब्बत, तनवीर-ए-जमाल-ए-खुदाई
तेरा वस्फ़ बयाँ हो किस से, तेरी कौन करेगा बड़ाई
इस गर्द-ए-सफ़र में गुम है जिब्रील-ए-अमीं की रसाई
तेरी एक नज़र के तालिब, तेरे एक सुख़न पर कुर्बां
ये सब तेरे दीवाने, ये सब तेरे शैदाई
ये रंग-ए-बहार-ए-गुलशन, ये गुल और गुल का जोबन
तेरे नूर-ए-क़दम का धोवन, उस धोवन की रानाई
मा अज्मलका तेरी सूरत, मा अहसनका तेरी सीरत
मा अक्मलका तेरी ‘अज़मत, तेरी ज़ात में गुम है ख़ुदाई
ए मज़हर-ए-शान-ए-जमाली! ए ख़्वाजा-ओ-बंदा-ए- आली!
मुझे हश्र में काम आ जाए मेरा ज़ौक़-ए-सुख़न-आराई
तू रईस-ए-रोज़-ए-शफ़ा अत. तू अमीर-ए-लुत्फ़-ओ-इनायत
हे अदीव को तुझ से निस्बत ये गुलाम है तू आकाई ।