ये शहर-ए-मुस्तफ़ा है, मदीना करीम है

 सब को निभा रहा है, मदीना करीम है

क्यूँ ना करीम हो ये कि आक़ा करीम का

मस्कन जो बन गया है, मदीना करीम है

फैला के अपनी बाँहें बुलाता है बार-बार

रहमत का दायरा है, मदीना करीम है

टुकड़ों पे उन के पलते हैं शाह-ओ-गदा सभी

सुफ़रा लगा हुवा है, मदीना करीम है।

लब खोलने से पहले ही आक़ा ने दे दिया

मेरा भी तजरिबा है, मदीना करीम है

है ज़र्फ़ ला जवाब, करम बे-मिसाल है।

मुझ जैसा आ गया है, मदीना करीम है।

जन्नत भी मुझ को आप के क़दमों में मिल गई

कैसा करम हुवा है, मदीना करीम है

क्या माँगूँ मुस्तफ़ा से, उजागर ! दिली-मुराद

सब कुछ तो दे दिया है, मदीना करीम है