बलगल उला बे कमालीही
कश-फद-दु बी जमालीही
हसनत जमीउ खिसालीही
सल्लु आलाहे वालेहि
करू तेरे नाम पे जा फिदा
ना बस एक जान दो जहाँ फिदा
दो जहाँ से भी नही जी भरा
करू क्या करोड़ो जहाँ नही
सल्लुआलाहे वालेहि …………….
ना तो मेरा कोय कमाल है
ना है दखल इस मे गुरूर का
मूज़े रखते हैं वो निगाह मई
ये करम है मेरे हुज़ूर का
सल्लुआलाहे वालेहि …………….
जिसे चाहा दर पे बुला लिया
जिसे चाहा अपना बना लिया
ये बारे करम के हैं फेसले
ये बारे नसीब की बात है
सल्लुआलाहे वालेहि …………….
यही आरज़ू जो हो सुखरर
मिले दो जहाँ की आबरू
मैं काहु गुलाम हू आपका
वो कहे के हमको क़ुबूल है
सल्लुआलाहे वालेहि
भर दो झोली मेरी या मुहम्मद
बुललो फिर मुझे आए शाह-ए-बहरोबार
बख्ते खुस्ता ने मुझे रोज़े पे जाने ना दिया