क़ादरी आस्ताना सलामत रहे
मुस्तफ़ा का घराना सलामत रहे

 

पल रहे हैं जहा से ये दोनों जहां

वो सखी आस‌ताना सलामत रहे

 

दर्दमंदों के सर पर है साया- फिगन

आप का शामियाना सलामत रहे

 

तुम से मंसूब है जिंदगी का निसाब

हश्र तक ये फ़साना सलामत रहे।

 

ये नकीरेन बोले मुझे कब्र में

मुस्तफ़ा का दीवाना सलामत रहे

 

हुक्म था कि अदा हो नमाज़े पचास

आप का आना-जाना सलामत रहे

 

है कयामत तक हर ज़माना तेरा

तेरा हर  इक जमाना सलामत रहे

 

ग़ौस की महफ़िलें फिर से सजने लगीं

 सुन्नियों का घराना सलामत रहे

 

‘इत्रत-ए-फ़ातिमा पर उजागर निसार

सय्यदा का घराना सलामत रहे