अजब रंग पर है बहारे मदीना
के सब जन्नतें हैं निसारे मदीना
ये जन्नत की तस्वीर है
मदीना ही तक़दीर है
लबों पर सजा कर दुरूदों की बोली
चली आ रही है फ़रिश्तों की टोली
दमे सुब्हो उतरी है रह़मत की डोली
मुरादों से भर जाएगी सबकी झोली
वो नूरून अला नूर त़शरीफ़ लाए
ख़ुदाई के दस्तूर तशरीफ लाए
ये नूरानी तनवीर है
मदीना ही तक़दीर है
जो सूखे शजर थे हरे हो रहे हैं
बहारे बहश्ती में सब खो रहे हैं
जहानों के फितने कहीं सो रहे हैं
सभी मौज-ए-रह़मत से मुंह धो रहे हैं
दरे आमना चूमते हैं फ़रिश्ते
अजब बज्द में झूमते हैं फरिश्ते
ये आमद की तासीर है
मदीना ही तक़दीर है
ज़रा चार यारों की सीरत तो देखो
सदाक़त, अदालत, सुजाअत तो देखो
वो उस्मानी हुसने सदाक़त तो देखो
उवैसी, बिलाली मुह़ब्बत तो देखो
ये जल्वे नबी के माह-ओ-साल के हैं
ये सिक्के मदीने के टकसाल के हैं
ये आक़ा की जागीर है
मदीना ही तक़दीर है